रूप रेत भर धूप खेत भर फैल गई है चादर ताने तट पर
सूरज नभ पर हाँफ रहा है आशा कर कर लौटेगी उसकी यह आभा भर-भर रेत नदी के तट पर
पर कैसे लौटेगी छोड़ उम्र भर अभी-अभी तो आई है धूप कहाँ भेंटी रेती को
जी भर! ('रेत में आकृतियाँ' संग्रह से)
हिंदी समय में श्रीप्रकाश शुक्ल की रचनाएँ